शिव का प्रिय माह समापन की ओर अग्रसर है।

*“श्रावण…..श्रवण…..शिव”*

सरलता के सुगंध की वर्षा करने वाले शिव का प्रिय माह समापन की ओर अग्रसर है। भूत-भावन भोलेनाथ को राम नाम अत्यंत प्रिय है। वे माता पार्वती को भी राम नाम की कथा श्रवण के लिए प्रेरित करते है और माँ भी आतुर होकर जगतपति श्री राम की कथा श्रृद्धा पूर्वक श्रवण करती है। राम कथा की अमृत वर्षा में महेश और भवानी सदैव सराबोर होते है। भगवान होने के पश्चात् भी वे राम भक्ति में ही आनंद की अनुभूति करते है। शिव सदैव सरलता और त्याग से सुशोभित होते है और माँ भगवती जगदम्बा शिव के इसी स्वरुप का सदैव वरण करना चाहती है।

श्रावण माह तो प्रभु की भक्ति के श्रवण का भी माह है, फिर भले ही वह राम कथा हो या शिवमहापुराण। रूद्र अवतार हनुमान भी तो राम कथा प्रेमी है। इसलिए जब भगवान राम ने अपनी लीला समाप्त की और हनुमान से चलने का आग्रह किया तो उन्होंने चलने से मना कर दिया, क्योंकि भगवान की कथा रूपी अमृत वर्षा तो केवल धरती पर ही होती है और वे सदैव इसी राम कथा के रसास्वादन में लीन रहते है। श्रावण माह हमें श्रवण अर्थात सुनने की ओर भी प्रेरित करता है। भगवान की कथा सुनने के पश्चात् हमें भक्ति करने में आनंद का अनुभव होता है और यह कथा श्रवण हमारी भक्ति को और भी दृढ़ता प्रदान करती है। कथाएँ हमें भगवान के स्वरुप को समझने में सहायक होती है और जीवन के संशय को समाप्त करती है। जीवन में श्रवण का महत्त्व सर्वाधिक है। राजा परीक्षित को कथा के द्वारा ही उद्धार प्राप्त हुआ था।

हरि और हर की कथा श्रवण तो जीवन की उन्नति और उद्धार का मार्ग प्रशस्त करती है। जलधारा से प्रसन्न होने वाले शिव जल के अभाव में भी मात्र शिव मानस पूजा से प्रसन्न हो जाते है, अर्थात हम मन से भी विभिन्न शिव प्रिय द्रव्यावली अर्पित कर शिव कृपा प्राप्त कर सकते है। भगवत कथा श्रवण से हमारी मन की आँखें खुलती है। हम ह्रदय से कहाँ है यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। हम गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी अपने ह्रदय में भगवान के स्वरुप को विराजमान कर सकते है। कथा हमें हमारे ह्रदय में ईश्वर के प्रति प्रेम और अनुराग को पल्लवित और पुष्पित करती है।

शिव अजन्मे है, इसलिए उनकी लिङ्ग रूपों में सर्वत्र पूजा होती है। यह उनका निराकार स्वरुप है। लिङ्ग पूजा का विधान आकाश, पाताल एवं पृथ्वी लोक सभी जगह है। स्वयं श्री हरि नारायण, माता लक्ष्मी, ब्रह्मदेव, देवता-दानव, यक्ष, गन्धर्व इत्यादि अपने-अपने मनोरथ के अनुरूप विभिन्न प्रकार के शिवलिंग का पूजन एवं अर्चन करते है। शिव अपना साकार स्वरुप भक्त को दर्शन देते वक्त प्रत्यक्ष करते है। सत्यम शिवम् सुंदरम रूप ही शिव का सर्वश्रेष्ठ स्वरुप है। शिव के जीवन और शिव की वेशभूषा में भी गहराई निहित है। शिव की ध्यान मुद्रा अंतर्मुखी होने को प्राथमिकता देती है, अर्थात हमें सर्वप्रथम अपने भीतर की उथल-पुथल को शांत करना है। भीतर की एकाग्रता हमें बाहर के परिवेश से प्रभावित नहीं होने देगी और तभी हम शिव के आनंद स्वरुप को प्राप्त कर सकते है।

शिव की वेशभूषा में सर्पो से शृंगार है। शिव के कुंडल भी विष के है। दुनिया हमें जहर रूपी विष प्रदान करेगी परन्तु हमें कथा के श्रवण से उस विष के प्रभाव को नष्ट कर देना है और जीवन में कुछ अच्छा ग्रहण एवं आत्मसात करना है। शिव के कंठ में विष और ह्रदय में राम है। इसलिए उन्होंने विष को कंठ में ही रोक दिया और नीलकंठ भगवान शिव ने अपने ह्रदय को अपने आराध्य श्री राम के लिए निर्मल एवं पवित्र रखा, इसीलिए सारी विषमताओं के बावजूद भी वे सदैव ध्यान में एकाग्र रहते है। शिव ने जटाधारी स्वरुप धारण किया है, वे अन्य देवताओं की तरह स्वर्ण एवं हीरे जड़ित मुकुट एवं आभूषण धारण नहीं करते है, क्योंकि यह सब माया का स्वरुप है और शिव योगी है। शिव ने अपनी जटाओं को बाँधकर यह सन्देश दिया है कि हमें जीवन के जंजालो एवं झंझटों को बांधना होगा। उनकों कभी सबके सामने प्रदर्शित न करें। उनको समेटने की कोशिश करें, क्योंकि यह जीवन का एक हिस्सा है। शिव के शीश से गंगा प्रवाहित होती है, इसका अर्थ है हमें भक्ति को जीवन में सर्वोच्च स्थान प्रदान करना चाहिए क्योंकि गंगा भक्ति का स्वरुप है। शिव के मस्तक पर चन्द्रमा सुशोभित है और यह चन्द्रमा शीतलता प्रदान करता है इसका तात्पर्य है हमें भी मस्तक पर शीतलता को धारण करना होगा अर्थात शांत चित्त रहना होगा तभी हम अपने जीवन को एक निश्चित ध्येय प्रदान कर सकते है।

शिव परिवार की सबसे अनूठी विशेषता यह भी है की शिव परिवार का सदस्य पूजित है। माँ पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी, रिद्धि सिद्धि, शुभ, लाभ यह सभी पूजित है। शिव परिवार में सांसारिक सुविधाओं की कमी है फिर भी आनंद और स्नेह की अविरल धारा कैलाश में प्रवाहित होती रहती है। यह शिव साक्षात् कल्याण का स्वरुप है, तो क्यों न श्रावण के अंतिम दिनों में शिव और शिव के आराध्य श्री राम की कथा श्रवण कर हम इस मनुष्ययोनि के उद्धार का मार्ग प्रशस्त करें।

*डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)*

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