काशीपुर आज बिजली संकट की भयंकर मार झेल रहा है।

काशीपुर /उत्तराखंड,,,, औद्योगिक दृष्टि से उत्तराखंड का महत्वपूर्ण शहर काशीपुर आज बिजली संकट की भयंकर मार झेल रहा है। शहरवासी लगातार गर्मी, उमस और अंधेरे के बीच जीने को मजबूर हैं, जबकि विद्युत विभाग और प्रशासनिक अधिकारियों की चुप्पी ने इस संकट को और गंभीर बना दिया है।
बीते एक सप्ताह से शहर के कई इलाकों में दिन-रात बिजली की आंख मिचौली चल रही है। कभी दो घंटे, कभी चार घंटे, तो कभी पूरा दिन बिना बिजली के गुजर रहा है। स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है कि व्यापार चौपट हो गया है, छात्रों की पढ़ाई बाधित है और अस्पतालों में इलाज ठप्प होने की नौबत आ गई है।
स्थानीय लोगों और व्यापारियों का कहना है कि यह कोई सामान्य तकनीकी खराबी नहीं, बल्कि एक सुनियोजित साजिश है। विद्युत विभाग के कुछ कर्मियों की मिलीभगत से माफिया शहर की बिजली व्यवस्था पर नियंत्रण कर रहे हैं। जानबूझकर फॉल्ट दिखाकर या अघोषित मेंटेनेंस के नाम पर बिजली काट दी जाती है, जिससे जेनरेटर, इन्वर्टर और अन्य वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत बेचने वाले लाभ कमा सकें। शहर के अलग-अलग इलाकों से जनता का आक्रोश अब खुलकर सामने आने लगा है। नागरिक मंच, व्यापार मंडल, और युवाओं के संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि स्थिति जल्द नहीं सुधरी, तो पूरे शहर में व्यापक विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। विद्युत माफियाओं और अधिकारियों की मिलीभगत से काशीपुर को अंधेरे में झोंका जा रहा है। हम आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।” आजाद नगर, ठाकुरद्वारा रोड, कुंडेश्वरी, आईटीआई, राजपुरा, और गोविंदनगर जैसे दर्जनों इलाकों में लोग दिन-रात गर्मी में बेहाल हैं। वार्ड नंबर 8 की निवासी रेखा देवी बताती हैं, “रात 11 बजे बिजली जाती है, सुबह 4 बजे तक नहीं आती। छोटे बच्चों को लेकर रात भर जागना पड़ता है।”
व्यापारी अमर गोयल कहते हैं, “बिजली नहीं है, ग्राहक नहीं आ रहे, सारा कारोबार ठप हो गया है। हम बिजली बिल तो पूरा भरते हैं, फिर यह अन्याय क्यों?
जब अमर उजाला संवाददाता ने उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPCL) के अधिकारियों से बात की, तो उन्होंने रटे-रटाए जवाब दिए – “लाइन में फॉल्ट है”, “लोड बढ़ गया है”, “मरम्मत का कार्य चल रहा है”। वहीं, विधायक और मेयर सहित किसी भी जिम्मेदार प्रतिनिधि ने इस पर कोई बयान जारी नहीं। वर्तमान में काशीपुर में दिन का तापमान 40 डिग्री से ऊपर पहुंच गया है। ऐसी स्थिति में बिजली की यह बदहाली प्रशासनिक लापरवाही का स्पष्ट संकेत हं।

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