सावन शुक्ल पक्ष की नाग पंचमी : आस्तिक नामक ब्राह्मण ने सर्प यज्ञ रोक को गाय के दूध से स्नान कराता है उसके कुल को सभी नाग अभय दान देते हैं. उसके परिवार जनों को सर्प का भय नहीं रहता है.
आस्तिक ब्राह्मण का नाम साँपों के काटने से सुरक्षा का प्रतीक है। इनका नाम स्मरण करने से सर्प, नाग अपने स्थान से तुरंत लौट जायेगे,
साँपों को बचाने वाले वीर ब्राह्मण की जय जयकार हो:
चंद्रशेखर जोशी “वशिष्ठ गोत्र” कुमायूं के नाग मंदिरों के पुजारी परिवार :
हिंदू पंचांग के अनुसार, नाग पंचमी का पर्व हर साल सावन महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है
यह पर्व 29 जुलाई को मनाया जाएगा आइए, आपको पूरी कथा विस्तार से सुनाता हु
अपने घरों के बाहर “आस्तिक मुनि की दुहाई” क्यों लिखते हैं.
“सर्पापसर्प भद्रं ते गच्छ सर्प महाविष। जनमेजयस्य यज्ञान्ते आस्तीकवचनं स्मर।।”
“हे महाविषधर सर्प! तुम चले जाओ, तुम्हारा कल्याण हो। जनमेजय के यज्ञ की समाप्ति में आस्तिक ब्राह्मण मुनि ने जो कुछ कहा था, उसका स्मरण करो।”
यह मंत्र सर्पों को शांत कर देता है और उनसे सुरक्षा होती है.
नागों ने यह वरदान आस्तीक महाराज को दिया और इस तरह धरती के प्राणियों को सर्पों के भय से मुक्त कर दिया. क्या कथा है जो नागों ने ब्राह्मण को दिया
सर्पापसर्प भद्रं ते गच्छ सर्प महाविष। जनमेजयस्य यज्ञान्ते आस्तीकवचनं स्मर।। आस्तीकस्य वचः श्रुत्वा यः सर्पो न निवर्तते। शतधा भिद्यते मूर्ध्नि शिंशवृक्षफलं यथा।”
यह मंत्र बताता है कि जो भी आस्तिक मुनि के वचन को सुनकर भी नहीं लौटता, उसका फन शीशम के फल की तरह सैकड़ों टुकड़ों में बंट जाएगा.
विस्तार से पढ़े,, लिंक क्लिक करना पड़ेगा: चंद्रशेखर
https://www.facebook.com/share/p/19jDhj5g8P/